पंजाब में इलाज महंगा सौदा
सरकारी स्वास्थ्य तंत्र की कमजोरी और निजी अस्पतालों की निर्भरता ने पंजाब में इलाज को बनाया आम आदमी की पहुंच से बाहर, राष्ट्रीय औसत से 27% अधिक खर्च कर रहे हैं राज्यवासी
पंजाब, जो कभी देश के सबसे समृद्ध राज्यों में गिना जाता था, आज स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है। हालिया सरकारी और स्वतंत्र रिपोर्टों में यह खुलासा हुआ है कि पंजाब के नागरिकों को इलाज पर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक खर्च करना पड़ रहा है। जहां एक ओर स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को लेकर प्रश्नचिन्ह हैं, वहीं दूसरी ओर निजी अस्पतालों पर बढ़ती निर्भरता आम जनता की जेब पर भारी पड़ रही है।
स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति
राष्ट्रीय स्वास्थ्य खाता (National Health Accounts) और नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) की रिपोर्टों के अनुसार, पंजाब में औसतन हर परिवार को इलाज पर सालाना 25,000 रुपये से अधिक खर्च करना पड़ता है, जो कि राष्ट्रीय औसत से लगभग 27 प्रतिशत अधिक है। इसका मुख्य कारण है राज्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुंच और निजी चिकित्सा संस्थानों का एकाधिकार।
गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) की संख्या अपेक्षाकृत कम है और जहां हैं भी, वहां डॉक्टरों की कमी, दवाओं की अनुपलब्धता और सुविधाओं का अभाव है। इसका सीधा असर यह होता है कि मरीजों को मजबूरी में निजी क्लिनिक और अस्पतालों का रुख करना पड़ता है, जहां शुल्क बहुत अधिक होता है।
निजी अस्पतालों की बढ़ती निर्भरता
पंजाब में निजी स्वास्थ्य क्षेत्र का विस्तार पिछले एक दशक में तेज़ी से हुआ है। आंकड़ों के अनुसार, राज्य के लगभग 70% लोग किसी न किसी रूप में निजी अस्पतालों पर निर्भर हैं। इसके पीछे मुख्य कारण है सरकारी अस्पतालों में लंबी प्रतीक्षा सूची, मशीनों की खराबी और विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी।
लुधियाना, अमृतसर, जालंधर जैसे प्रमुख शहरों में निजी मल्टी-स्पेशलिटी अस्पतालों की भरमार है, लेकिन इनकी फीस इतनी अधिक है कि आम मध्यमवर्गीय या निम्नवर्गीय परिवार के लिए इलाज करवाना मुश्किल हो जाता है। एक सामान्य ऑपरेशन पर ही 60,000 से 1 लाख रुपये तक का खर्च आ जाता है।
बीमा कवरेज का अभाव
राज्य में स्वास्थ्य बीमा योजना की पहुंच भी सीमित है। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (आयुष्मान भारत) के तहत बहुत से पात्र लाभार्थी या तो पंजीकृत नहीं हैं या उन्हें योजना की जानकारी नहीं है। इसके अलावा, राज्य सरकार की अपनी कोई मजबूत स्वास्थ्य बीमा योजना नहीं है जिससे सभी नागरिकों को इलाज का सुरक्षा कवच मिल सके।
एक रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब में केवल 18% आबादी को ही किसी न किसी प्रकार का स्वास्थ्य बीमा प्राप्त है, जबकि यह आंकड़ा केरल या तमिलनाडु जैसे राज्यों में 50% से अधिक है।
कोविड-19 महामारी का असर
कोविड महामारी ने भी स्वास्थ्य सेवाओं की कमियों को उजागर किया। महामारी के दौरान निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और बेड के लिए मनमानी फीस वसूली गई। हजारों परिवारों ने इलाज के लिए भारी कर्ज लिया और अब तक उस ऋण से उबर नहीं पाए हैं। इसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य सेवा पर विश्वास भी कम हुआ है, लेकिन विकल्पों की कमी के कारण लोग फिर भी मजबूरी में वहीं जाते हैं।
सरकार की पहल और चुनौतियाँ
पंजाब सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए मोहल्ला क्लिनिक जैसी कुछ पहलें की हैं, लेकिन अभी यह प्रयास बहुत प्रारंभिक स्तर पर हैं। राज्य में स्वास्थ्य बजट का हिस्सा भी अभी कुल बजट का केवल 4.8% है, जो राष्ट्रीय मानक 8% से काफी कम है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना होगा, डॉक्टरों की भर्ती करनी होगी, अस्पतालों में आधुनिक उपकरण लगाने होंगे और दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही स्वास्थ्य बीमा की पहुंच बढ़ाकर निजी इलाज का बोझ कम करना होगा।
निष्कर्ष
पंजाब में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति एक चिंताजनक तस्वीर पेश करती है। जहां सरकारी सेवाएं कमजोर हैं, वहीं निजी क्षेत्र अत्यधिक महंगा है। ऐसे में आम नागरिक की जेब पर इलाज भारी पड़ रहा है। यह स्थिति न केवल स्वास्थ्य अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक असमानता को भी बढ़ावा देती है। अगर समय रहते सरकार ने इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह संकट और गहराता चला जाएगा।
