'मैं विपक्ष का नेता, फिर भी मुझे बोलने नहीं दे रहे'
‘मैं विपक्ष का नेता, फिर भी मुझे बोलने नहीं दे रहे’ लोकसभा में राहुल गांधी ने सरकार पर लगाया बोलने से रोकने का आरोप, कहा – “लोकतंत्र में विपक्ष की आवाज भी जरूरी”, सत्ता पक्ष के हंगामे से भाषण बाधित
नई दिल्ली: संसद के मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में एक बार फिर राजनीतिक गर्मी देखने को मिली जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सरकार पर खुला आरोप लगाया कि उन्हें सदन में अपनी बात रखने से रोका जा रहा है। उन्होंने कहा, “मैं विपक्ष का नेता हूं, फिर भी मुझे बोलने नहीं दिया जा रहा। क्या यही लोकतंत्र है?” उनके इस बयान के साथ ही सदन में हंगामा और तेज हो गया।
राहुल गांधी ने यह टिप्पणी तब की जब वे सदन में अपनी बात रख रहे थे और सत्ता पक्ष की ओर से बार-बार टोका-टोकी हो रही थी। कांग्रेस नेता ने कहा कि लोकतंत्र में हर आवाज की अहमियत होती है, खासकर विपक्ष की, लेकिन मौजूदा सरकार इसे दबाने की कोशिश कर रही है।
सत्ता पक्ष की नाराजगी
राहुल गांधी की टिप्पणी पर भाजपा सांसदों ने तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि वह संसद की गरिमा को ठेस पहुंचा रहे हैं। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा, “राहुल गांधी खुद बोल रहे हैं और फिर कह रहे हैं कि उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा। ये दोहरी बात है।”
हालांकि, कांग्रेस के अन्य सांसदों ने राहुल गांधी का समर्थन करते हुए कहा कि जब भी वे सरकार की आलोचना करते हैं या जनहित के मुद्दे उठाते हैं, तो उन्हें व्यवस्थित ढंग से बोलने से रोका जाता है।
पीएम मोदी और अमीट शाह पर निशाना
राहुल गांधी ने अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को भी निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि सरकार जनता के मुद्दों से भटक रही है और संसद को केवल “एकतरफा एजेंडा” चलाने का मंच बना दिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि देश की जनता महंगाई, बेरोजगारी और सामाजिक अन्याय से जूझ रही है, लेकिन सरकार इन विषयों से मुंह मोड़ रही है।
स्पीकर की भूमिका पर सवाल
राहुल गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका पर भी सवाल उठाए और कहा कि सदन का संचालन निष्पक्ष होना चाहिए। उन्होंने कहा, “अगर विपक्ष के नेता को बोलने नहीं दिया जाएगा, तो यह लोकतंत्र का अपमान है। स्पीकर को निष्पक्ष भूमिका निभानी चाहिए, ना कि सरकार के दबाव में आकर फैसले लेने चाहिए।”
विपक्ष का समर्थन
राहुल गांधी के इस बयान के बाद कई अन्य विपक्षी दलों ने भी उनका समर्थन किया। टीएमसी, एनसीपी, डीएमके और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने कहा कि विपक्ष की आवाज को दबाने की कोशिश असंवैधानिक है और यह संसद की आत्मा के खिलाफ है।
डीएमके सांसद कनिमोळी ने कहा, “जब सदन में विपक्ष की आवाज नहीं सुनी जाएगी, तब लोकतंत्र केवल एक दिखावा बन कर रह जाएगा।”
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
राहुल गांधी का यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया। कांग्रेस समर्थकों ने इसे “सच की आवाज” बताते हुए ट्विटर और फेसबुक पर अभियान शुरू कर दिया। वहीं भाजपा समर्थकों ने इसे “ड्रामा” करार देते हुए कहा कि कांग्रेस केवल सहानुभूति बटोरना चाहती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी का यह रुख आगामी चुनावों से पहले विपक्षी एकता को मज़बूती दे सकता है। विशेष रूप से ऐसे समय में जब विपक्ष सरकार को मुद्दों पर घेरने की रणनीति बना रहा है।
निष्कर्ष
राहुल गांधी की यह टिप्पणी भारतीय संसद के भीतर लोकतंत्र और असहमति की भूमिका को लेकर एक गंभीर बहस को जन्म दे रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा संसद के कामकाज और देश की राजनीति को किस दिशा में मोड़ता है।
