स्वतंत्रता दिवस — बलिदानों का संकल्प और भविष्य का संदेश Mufti Shuaib Aalam
ईद-उल-अज़हा के मौके पर मुफ़्ती शुऐब आलम क़ासमी साहब (नाज़िम-ए-इस्लाहे-मुआशरा, जमीयत उलेमा ज़िला लुधियाना) से ख़ास बातचीत
प्रश्न: ईद-उल-अज़हा का वैश्विक संदेश क्या है?
उत्तर: ईद-उल-अज़हा केवल मुसलमानों के लिए ख़ुशी का दिन नहीं बल्कि पूरी इंसानियत के लिए ख़ुलूस, त्याग और क़ुर्बानी का वैश्विक संदेश है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि अल्लाह की रज़ा के लिए अपनी हर प्यारी चीज़ क़ुर्बान की जा सकती है। हज़रत इब्राहीम अ. ने जो बेमिसाल क़ुर्बानी दी, वह रहती दुनिया तक वफ़ादारी, आज्ञाकारिता और नीयत की सच्चाई की अलामत है।
ईद और क़ुर्बानी की फ़ज़ीलत: क़ुरआन व हदीस की रौशनी में
प्रश्न: क़ुरआन में क़ुर्बानी के बारे में क्या फरमाया गया है?
उत्तर:
अल्लाह तआला फरमाता है:
अनुवाद: अल्लाह तक न तो उनका गोश्त पहुँचता है और न खून, बल्कि तुम्हारी परहेज़गारी (नीयत) अल्लाह तक पहुँचती है।
(सूरह हज्ज: 37)
प्रश्न: हदीस में क़ुर्बानी की क्या फ़ज़ीलत बयान हुई है?
उत्तर:
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:
“क़ुर्बानी के दिन, अल्लाह के नज़दीक सबसे पसंदीदा अमल क़ुर्बानी करना है।”
(तिर्मिज़ी शरीफ़)
और यह भी फ़रमाया:
” क़ुर्बानी के जानवर के हर बाल पर एक नेकी है।”
(इब्न माजा)
क़ुर्बानी किन पर वाजिब है?
प्रश्न: किन लोगों पर क़ुर्बानी वाजिब है?
उत्तर:
हर वह मुसलमान, समझदार (अाकिल), बालिग़, मुकीम, और साहिबे-निसाब व्यक्ति पर क़ुर्बानी वाजिब है, जिसके पास ईद-उल-अज़हा के दिन (10 ज़िलहिज्जा से 12 ज़िलहिज्जा तक) बुनियादी ज़रूरतों से ज़्यादा साढ़े बावन तोला चाँदी या उसके बराबर कीमत का माल या सामान हो।
क़ुर्बानी की शर्तें क्या हैं?
उत्तर:
1. जानवर सही-सलामत हो, उसमें कोई ज़ाहिरी ऐब न हो।
2. क़ुर्बानी का वक्त ईद की नमाज़ के बाद से लेकर 12 ज़िलहिज्जा की मगरिब तक है।
3. नीयत ख़ालिस अल्लाह की रज़ा के लिए हो।
4. जानवर की उम्र शरई हद के मुताबिक हो:
बकरी / बकरा: एक साल
भैंस/भैंसा/कट्टा/कट्टी: दो साल
ऊँट: पाँच साल
इब्राहीमी सुन्नत और नीयत की ख़ुलूस का पहलू
प्रश्न: इब्राहीमी सुन्नत की असल रूह क्या है?
उत्तर:
हज़रत इब्राहीम अ. ने अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे को क़ुर्बान करने का इरादा किया, जबकि वह उनकी बुढ़ापे की अकेली औलाद थे। यह अमल सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा के लिए था। यही ख़ुलूस, यही इताअत, यही तस्लीम व रज़ा हर क़ुर्बानी की रूह है।
क़ुर्बानी सिर्फ़ जानवर ज़बह करने का नाम नहीं, बल्कि दिल से अल्लाह की मोहब्बत और वफ़ादारी का इज़हार है।
ज़रूरी सवाल-जवाब (फ़िक़्ही मसाइल)
प्रश्न: क्या एक जानवर की क़ुर्बानी कई लोगों की तरफ़ से हो सकती है?
उत्तर:
हाँ, बड़े जानवर जैसे भैंस, भैंसा, कट्टा ,कट्टी, ऊँट आदि में सात लोग शरीक हो सकते हैं, बशर्ते कि सबकी नीयत क़ुर्बानी या अ़क़ीक़ा हो।
प्रश्न: क्या औरत भी क़ुर्बानी कर सकती है?
उत्तर:
बिलकुल, औरत पर भी वही हुक्म लागू होता है जो मर्द पर है। अगर वह साहिबे-निसाब है, तो उस पर भी क़ुर्बानी वाजिब है।
प्रश्न: जो व्यक्ति खुद क़ुर्बानी नहीं कर सकता, क्या वह किसी दूसरे को वकील बना सकता है?
उत्तर:
जी हाँ, वह किसी को वकील बना सकता है, जो उसकी तरफ़ से क़ुर्बानी कर दे।
सफ़ाई व स्वच्छता का ख़्याल रखें
प्रश्न: क़ुर्बानी के मौक़े पर सफ़ाई का क्या ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
इस्लाम हमें इबादतों के साथ-साथ समाजी सफ़ाई और हिफाज़त की भी शिक्षा देता है। इसलिए:
इस्तेमाल के लायक़ न रहने वाली चीज़ों को खुले में न फेंकें।
खून, आँतें और हड्डियाँ सही तरीक़े से दफ़न करें।
खाल और अन्य बची चीज़ें ज़ाया न करें, उन्हें सदक़ा करें या किसी मदारिस / संस्था को दें।
अपने मुहल्ले और गली को साफ़-सुथरा रखना भी एक दीनी ज़िम्मेदारी है।
ईद का संदेश
ईद-उल-अज़हा हमें त्याग, क़ुर्बानी, एकता और साफ़-सफ़ाई का सबक़ देती है। यह केवल त्योहार नहीं, बल्कि अल्लाह की आज्ञा की इताअत का दिन है। इस मौके पर हमें ग़रीबों, यतीमों और ज़रूरतमंदों को अपनी ख़ुशियों में शामिल करना चाहिए।
ईद-उल-अज़हा अल्लाह से क़ुर्बत का ज़रिया है। अगर हमारी नीयत ख़ालिस हो और हम सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा के लिए अमल करें, तो यही अमल हमें इब्राहीमी क़ाफ़िले का हिस्सा बनाता है।
आइए इस ईद पर क़ुर्बानी के साथ-साथ सफ़ाई, एकता और नीयत की सच्चाई को भी अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाएं।
