डीके शिवकुमार ने क्यों खींचे कदम पीछे सिद्धारमैया के सीएम बने रहने की बड़ी वजहें
डीके शिवकुमार
लोकसभा चुनाव और कांग्रेस की दक्षिण भारत रणनीति
सिद्धारमैया की लोकप्रियता और भाजपा को मात देने की मजबूती
भ्रष्टाचार के आरोप और डीके शिवकुमार पर भाजपा का संभावित हमला
संगठनात्मक समीकरण ओबीसी बनाम वोक्कालिगा फैक्टर
डीके शिवकुमार की संगठन में अहम भूमिका
विधायकों का समीकरण और संभावित बगावत का खतरा
राहुल गांधी और आलाकमान की स्थिरता रणनीति
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के भीतर सत्ता संतुलन को लेकर महीनों से चली आ रही खींचतान के बाद आखिरकार डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं और सिद्धारमैया ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे। डीके शिवकुमार और उनके समर्थक लंबे समय से सत्ता में ‘टर्न बाय टर्न’ का दावा कर रहे थे। उनका कहना था कि कांग्रेस हाईकमान से समझौते के तहत सिद्धारमैया ढाई साल के लिए सीएम और फिर ढाई साल के लिए शिवकुमार सीएम बनेंगे। मगर अब साफ हो गया है कि कम से कम फिलहाल कोई बदलाव नहीं होने जा रहा। ऐसे में सवाल है कि आखिर क्यों पार्टी नेतृत्व ने सिद्धारमैया पर ही भरोसा जताया और शिवकुमार को मनाने में कामयाब रहा? इसके पीछे कई वजहें मानी जा रही हैं, जो न सिर्फ कर्नाटक बल्कि पूरे दक्षिण भारत में कांग्रेस की सियासी रणनीति से जुड़ी हैं।
सबसे पहली वजह कांग्रेस का लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारत पर फोकस है। पार्टी को पता है कि उत्तर और पश्चिम भारत में भाजपा के मजबूत किले को भेदना इतना आसान नहीं होगा, इसलिए उसे कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से ज्यादा से ज्यादा सीटें चाहिए। इन राज्यों में भाजपा की पकड़ कमजोर या सीमित है। कर्नाटक इनमें से अकेला राज्य है जहां कांग्रेस की खुद की सरकार है, लिहाजा पार्टी यहां सत्ता में स्थिरता और संगठन में एकजुटता बनाए रखना चाहती है ताकि लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें जीती जा सकें। अगर सीएम बदलने जैसी बड़ी हलचल होती तो इसका सीधा असर कांग्रेस की छवि और चुनावी तैयारियों पर पड़ता, जिससे भाजपा को मौका मिल सकता था।
दूसरी वजह सिद्धारमैया की खुद की लोकप्रियता और उनकी पकड़ मानी जा रही है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री के तौर पर सिद्धारमैया की छवि एक अनुभवी, मजबूत और अनुभवी नेता की है, जिन्होंने राज्य के कई हिस्सों, खासकर पुराने मैसूर क्षेत्र में अच्छी पकड़ बनाई है। यह वही इलाका है जहां जेडीएस भी मजबूत है और कांग्रेस को जेडीएस-भाजपा के संभावित गठजोड़ से निपटना है। सिद्धारमैया की अगुआई में कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात दी थी और सरकार बनाई थी। पार्टी नेतृत्व समझता है कि चुनाव से पहले सीएम चेहरे में बदलाव कर सिद्धारमैया समर्थक वोटरों में भ्रम या नाराजगी पैदा करना जोखिम भरा होगा।
तीसरी बड़ी वजह डीके शिवकुमार पर भ्रष्टाचार के पुराने आरोपों और उनके खिलाफ चल रही ईडी-सीबीआई जांच भी बताई जा रही है। कांग्रेस नेतृत्व नहीं चाहता कि लोकसभा चुनाव से ऐन पहले ऐसा चेहरा सीएम बने, जिस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को भाजपा मुद्दा बना सके। इसके उलट सिद्धारमैया की छवि भ्रष्टाचार के मामले में अपेक्षाकृत साफ रही है, जिससे कांग्रेस को नैतिक बढ़त मिल सकती है।
चौथी वजह संगठनात्मक समीकरणों से जुड़ी है। डीके शिवकुमार की ताकत मुख्यत: वोक्कालिगा समुदाय में है, जो दक्षिण कर्नाटक के कुछ इलाकों में प्रभावशाली है, जबकि सिद्धारमैया ओबीसी समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं, जो पूरे राज्य में फैला है। कांग्रेस चाहती है कि ओबीसी और दलितों के बीच अपनी पकड़ मजबूत रखे, क्योंकि यही तबका भाजपा को सत्ता से दूर रखने में निर्णायक साबित हुआ है।
पांचवीं वजह ये भी है कि डीके शिवकुमार खुद प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पार्टी के फंड जुटाने और संगठन विस्तार की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। पार्टी के लिए उनकी यह भूमिका बेहद अहम है और कांग्रेस आलाकमान नहीं चाहता कि सत्ता परिवर्तन के चलते शिवकुमार का ध्यान संगठन से हटे या पार्टी के अंदर खींचतान बढ़े।
छठी वजह कर्नाटक कांग्रेस के अंदरूनी समीकरण भी हैं। दरअसल, सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार दोनों के समर्थक विधायकों की तादाद अच्छी-खासी है, लेकिन सिद्धारमैया खेमे के विधायकों की संख्या शिवकुमार खेमे से ज्यादा मानी जाती है। ऐसे में अगर नेतृत्व अचानक डीके शिवकुमार को सीएम बनाता तो पार्टी के अंदर ही बगावत के सुर उठ सकते थे, जो सरकार गिरने तक का खतरा पैदा कर सकते थे।
सातवीं और आखिरी वजह कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में राहुल गांधी का महत्व है। सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी खुद कर्नाटक सरकार में स्थिरता के पक्षधर हैं और चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव तक राज्य में कोई बड़ा बदलाव न किया जाए। उन्होंने हाल ही में दोनों नेताओं से अलग-अलग और फिर साथ में बात की और यथास्थिति बनाए रखने का संदेश दिया।
इन सभी वजहों को मिलाकर देखें तो कांग्रेस नेतृत्व ने फिलहाल सत्ता परिवर्तन का जोखिम न उठाने का फैसला किया। डीके शिवकुमार को मनाकर यह संदेश भी दिया गया कि वह पार्टी के लिए बेहद जरूरी हैं, लेकिन इस वक्त प्राथमिकता लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद हालात और समीकरणों के आधार पर नेतृत्व पर दोबारा मंथन हो सकता है, मगर फिलहाल सिद्धारमैया ही सीएम बने रहेंगे।
इस फैसले से कांग्रेस को अंदरूनी अस्थिरता से बचने में मदद मिलेगी और भाजपा के उस नैरेटिव को भी कमजोर किया जा सकेगा, जिसमें वह कांग्रेस को ‘अंदर से बंटी हुई पार्टी’ बताती है। अब देखना होगा कि कांग्रेस इस एकजुटता को लोकसभा चुनाव तक बनाए रख पाती है या नहीं।
